برگ سبز ۲۸۸
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گوینده (روشنک) : |
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ای مِهرِ تو در دلها ، وی مُهرِ تو بر لب ها |
ای شور تو در سر ها ، وی سّرِ تو در جان ها |
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تا عهد تو در بستم ، عهد همه بشكستم |
بعد از تو روا باشد نغزِ همه پیمان ها |
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كمال خجند (غزل) |
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ای روشنی از جسم تو چشم نگران را |
این روشنی چشم مبادا دگر آن را |
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زاهد زتو پوشد نظر و عقل فروشد |
این بی خبران را نگر ، این بی بصران را |
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با حُسنِ تو و ناز بوَد سوز و نیازی |
جانِ نگران را ، دل صاحب نظران را |
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از پیش من آن جانِ جهان را گذرانید |
تا خوش گذرانیم جهان گذران را |
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جان از سر كوی تو ندارد سر پرواز |
مرغی كه چمن یافت نجوید طیران را |
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كمال خجند (غزل) |
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آواز (محمد رضا شجریان) : |
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زلف چون دوش رها تا بسر دوش مكن |
ای مه امروز پریشان ترم از دوش مكن |
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ای سر زلف سیه دیگرم آشفته مساز |
اینهمه با مه من دست در آغوش مكن |
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بیش از این زهر بجامِ منِ مدهوش مكن |
مست و مدهوشم از آن لب سخن تلخ مگوی |
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گوهر اشكِ مرا بین و زچشمم مفكن |
سخن مدعیان را گُهر گوش مكن |
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فرصت شیرازی (غزل) |
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