گلهای رنگارنگ ۴۴۳
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آذر پژوهش (گوینده) |
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هر نوبتم كه در نظر ای ماه بگذری |
بار دوم ز بار نخستین نكوتری |
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انصاف می دهم كه لطیفان و دلبران |
بسیار دیده ام نه بدین لطف و دلبری |
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با دوست كنج فقر بهشت است و بوستان |
بی دوست خاك بر سر جاه و توانگری |
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فكرم به منتهای جمالت نمی رسد |
كز هر چه در خیال من آید نكوتری |
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سعدی (غزل) |
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شهیدی (آواز) |
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من و از خون دل پیمانه ای چند |
تو و پیمانه با بیگانه ای چند |
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به پیشت درد دل می گویم افسوس |
كه در گوشت بود افسانه ای چند |
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همان به كه آشنا محروم ماند |
كه محرم شد به او بیگانه ای چند |
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جمال شمع ناپیدا و هر سو |
از او آتش به جان پروانه ای چند |
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ملول از صحبت فرزانگانم |
خوشا ویرانه و دیوانه ای چند |
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نشاط اصفهانی (غزل) |
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آذر پژوهش (گوینده) |
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چو اسیر است در آن زلف سمن سای دلم |
چه كند گر نكند در شكنش جای دلم |
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بشد از دست من بی سر و بی پای دلم |
دلم ای وای به دل وای دلم ای وای دلم |
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عهدیه (ترانه) |
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چون اسیر است در آن زلف سمن سای دلم |
چه كند گر نكند در شكنش جای دلم |
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بشد از دست من بی سرو بی پای دلم |
دلم ای وای به دل وا دلم ای وای دلم |
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ای خیال سر زلف تو مرا محرم راز |
دست كوته نتوان كرد از آن زلف دراز |
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مطرب آخر ز برای دلم این نغمه بساز |
دلم ای وای به دل وا دلم ای وای دلم |
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ای خوشا پای گل و فصل بهار و لب رود |
صوفی از رقص نیاسوده و مطرب ز سرود |
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بشنو این نغمه پر زمزمه از زخمۀ عود |
دلم ای وای به دل وا دلم ای وای دلم |
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خواجوی کرمانی (غزل) |