گلهای تازه ۱۸۵
تصنیف: شجریان |
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مژده ای دل که دگر باد صبا باز آمد |
هُدهُدِ خوش خبر از طرفِ سَبا باز آمد |
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برکش ای مرغِ سحر نغمۀ داوودی باز |
که سلیمانِ گُل از باد هوا باز آمد |
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لاله بوی مَی نوشین بشنید از دَمِ صبح |
داغ دل بود و به اُمّید دوا باز آمد |
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لاله بوی مَی نوشین بشنید از دَمِ صبح |
داغ دل بود و به اُمّید دوا باز آمد |
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گرچه حافظ درِ رنجش زد و پیمان بشکست |
لطفِ او بین که به صلح از در ما باز آمد |
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حافظ (غزل) |
گوینده: فخری نیکزاد |
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روزِ هجران و شبِ فُرقت یار آخِر شد |
زدم این فال و گذشت اختر و کار آخِر شد |
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آن همه ناز و تنعّم که خزان میفرمود |
عاقبت در قدمِ بادِ بهار آخِر شد |
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آن پریشانی شبهای دراز و غم دل |
همه در سایۀ گیسوی نگار آخِر شد |
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شُکر ایزد که به اقبالِ کُله گوشۀ گُل |
نَخوَتِ بادِ دَی و شوکتِ خار آخِر شد |
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باورم نیست ز بدعهدی اَیّام هنوز |
قصۀ غُصّه که در صحبت یار آخِر شد |
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ساقیا لُطف نمودی قَدَحَت پُر مَی باد |
که به تدبیر تو تشویشِ خُمار آخِر شد |
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حافظ (غزل) |
آواز: شجریان |
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روزِ هجران و شبِ فُرقتِ یار آخِر شد |
زدم این فال و گذشت اختر و کار آخِر شد |
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آن همه ناز و تنعّم که خزان میفرمود |
عاقبت در قدمِ بادِ بهار آخر شد آخِر شد |
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آن پریشانی شبهای دراز و غم دل |
همه در سایۀ گیسوی نگار آخِر شد |
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شُکر ایزد که به اقبالِ کُله گوشۀ گُل |
نخوَتِ بادِ دَی و شوکتِ خار آخِر شد |
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حافظ (غزل) |
گوینده: فخری نیکزاد |
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بعد از این نور به آفاق دهیم از دلِ خویش |
که به خورشید رسیدیم و غُبار آخِر شد |
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صبح اُمّید که شد مُعتَکِفِ پردۀ غیب |
گو برون آی که کارِ شب تار آخِر شد |
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در شُمار ارچه نیاورد کسی حافظ را |
شُکر کان محنتِ بیرون ز شُمار آخِر شد |
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حافظ (غزل)
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